Health And Physical Education Class 9 Book PDF Free Download, स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा कक्षा 9 की किताब PDF Free Download.
Health And Physical Education Class 9 Book PDF
Sharirik Shiksha Ka Arth प्रश्न 1.
व्यक्तित्व का आधार क्या है?
उत्तर:
व्यक्तित्व के दो आधार हैंप्रथम – स्वस्थ एवं सुगठित शरीर। द्वितीय स्वस्थ चिन्तन व व्यवहार
नैतिक खेल एवं शारीरिक शिक्षा Class 9 प्रश्न 2.
शारीरिक शिक्षा किसका विकास करती है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक एवं सामाजिक विकास करती है। अर्थात् शारीरिक शिक्षा अपने तीव्र गति युक्त वृहद् मांसपेशीय क्रियाकलापों से बालक के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास करती है। अतः यह व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करती है।
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 1 लघूत्तरात्मक प्रश्न
स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा कक्षा 9 प्रश्न 1.
शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य बताइये।
उत्तर:
शरीर के विभिन्न अंगों को स्वस्थ बनाये रखना, चेतना पेशियों का तालमेल, कौशल तथा आचरण और व्यक्तित्व का विकास ही शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य हैं। अतः शारीरिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करना है।
Sharirik Shiksha Ki Avdharna प्रश्न 2.
स्वस्थ शरीर से हमारा क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
स्वस्थ शरीर से हमारा तात्पर्य है शारीरिक अंगप्रत्यंगों की सुव्यवस्थित वृद्धि, उनका समुचित विकास एवं सभी अंगों की निर्धारित कार्यक्षमता।
Sharirik Shiksha Ka Arth Bataiye प्रश्न 3.
शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य क्या है? बताइये।
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य व्यक्ति तथा व्यक्ति दलों के लिये उन परिस्थितियों में कुशल नेतृत्व, प्रचुर सुविधायें तथा समय का प्रावधान करना है जो भौतिक दृष्टि से स्वस्थ, मानसिक रूप से सजग तथा सामाजिक दृष्टि से सशक्त हों।
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 1 निबन्धात्मक प्रश्न
स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा कक्षा 9 की किताब प्रश्न 1.
शारीरिक शिक्षा की अवधारणा बताइये।
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा की अवधारणा – शारीरिक शिक्षा बालक का शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक एवं सामाजिक विकास करती है। शारीरिक शिक्षा को विद्यालयी शिक्षण प्रक्रिया में इसी लक्ष्य की प्राप्ति को दृष्टिगत रखकर सम्मिलित किया गया है। शारीरिक शिक्षा का शिक्षण सहज एवं नैसर्गिक रूप में बालक के शरीर को सुगठित, स्वस्थ तथा क्रियाशील रहने की प्रेरणा देकर व्यक्तित्व निर्माण के साथ-साथ, समाज निर्माण एवं उत्थान का एक घटक बनाने में सहायक होता है। हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों तथा वेद-पुराणों ने शारीरिक शिक्षा पर बहुत बल दिया था, उस समय भी यौगिक क्रियायें की जाती थीं। जैसे-जैसे सभ्यताओं का विकास हुआ शारीरिक शिक्षा एवं शिक्षा का भी विकास होता गया।
आधुनिक युग को यन्त्र युग कहा जाता है। आज प्रत्येक कार्य को मशीन द्वारा किया जाता है। व्यक्ति को बहुत ही कम शारीरिक श्रम की आवश्यकता पड़ती है। यान्त्रिक तथा मशीनी युग ने मनुष्य को निढाल बना दिया है। ऐसे समय में शारीरिक शिक्षा की बहुत आवश्यकता है। आज घर के काम में हाथ बँटाने व पैदल चलने की आदत ही नहीं रही, ऐसी स्थिति में आज के युवाओं को शारीरिक शिक्षा की बहुत आवश्यकता है। सुडौल एवं स्वस्थ युवक राष्ट्र की सम्पत्ति ही नहीं वरन् उसकी आवश्यकता भी हैं। हमारे देश के नवयुवक हर क्षेत्र में आगे बढ़े, इसके लिये शारीरिक शिक्षा को माध्यम के रूप में अपनाना उचित होगा।
Sharirik Shiksha Ka Arth Aur Paribhasha प्रश्न 2.
शारीरिक शिक्षा के लक्ष्य व उद्देश्य बताइये।
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा के लक्ष्य व उद्देश्य – शारीरिक शिक्षा का क्षेत्र बड़ा व्यापक है। इसमें विविध प्रकार के कार्यक्रमों का समावेश है जिनमें भाग लेने पर बालक को शारीरिक ही नहीं अपितु उसका मानसिक, संवेगात्मक एवं सामाजिक विकास इस प्रकार से होता है कि वह अपने भावी जीवन में अच्छे नागरिक की भाँति समाज में जीवनयापन कर सके। इस विषय के शिक्षण में अनेकों प्रकार के वृहत् तथा लघु खेलों, दौड़-परिपथ और क्षेत्रीय खेलों, नृत्य तथा मनोरंजन के कार्यों, पर्यटन, शिविर व प्रकृति विहार आदि कार्यक्रमों का समावेश हो। इसके साथ-साथ इसमें स्वास्थ्य एवं योग शिक्षण, शरीर-रचना, शरीर क्रिया विज्ञान आदि शिक्षण के तत्त्व भी मौजूद हैं।
शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में आने – वाले ये समस्त क्रियाकलाप बालक के शिक्षण के लिये ऐसे साधन हैं जिनमें भाग लेकर बालक को एक व्यक्तित्व पूर्ण नागरिक बनाने का साध्य अर्जित किया जाता है। जिस प्रकार शिक्षा बालक को सुसंस्कृत व्यवहार में ढालती है, उसी प्रकार शारीरिक शिक्षा भी अपने तीव्र गतियुक्त वृहद् मांसपेशीय क्रिया-कलापों से बालक के सम्पूर्ण व्यक्तित्व विकास में अपना योगदान देती है। इस दृष्टि से यह एक ऐसा विषय है जो बालक व युवा में निम्नांकित उद्देश्यों की पूर्ति में सक्षम है। सेन्ट्रल एडवायजरी बोर्ड ऑफ फिजिकल एज्यूकेशन एण्ड रिक्रेयशन 1956 के प्रतिवेदन के अनुसार शारीरिक शिक्षा के उद्देश्यों का उल्लेख निम्न प्रकार है –
- शारीरिक अंगों की पुष्टता का विकास
- स्नायु मांसपेशीय कुशलता का विकास
- चरित्र एवं व्यक्तित्व का विकास
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि शारीरिक शिक्षण केवल बल या शरीर संवर्धन ही नहीं वरन् यह व्यक्तित्व संवर्धन भी है।
शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य – शिक्षा के क्षेत्र में मार्गदर्शन आवश्यक है। यह मार्गदर्शन केवल उद्देश्य ही कर सकते हैं। ये किसी भी मापदण्ड से जाँचे जा सकते हैं। ये व्यक्ति अथवा संस्था को किसी विशेष दिशा की ओर ले जाने के लिये पथप्रदर्शन का कार्य करते हैं। नि:सन्देह इसकी प्राप्ति सामान्य सिद्धान्तों द्वारा ही होती है। इन्हीं के बल पर विद्यार्थियों के आचरण में कई प्रकार के परिवर्तन तथा समायोजन सम्भव होते हैं ताकि लक्ष्य की ओर अग्रसर हुआ जा सके। शारीरिक शिक्षा, शिक्षा का एक अभिन्न अंग है जिसका अपना लक्ष्य है।
जे.एफ. विलियम्स के अनुसार – शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य व्यक्ति तथा व्यक्ति दलों के लिए उन परिस्थितियों में कुशल नेतृत्व, प्रचुर सुविधाएँ तथा समय का प्रावधान करना है, जो भौतिक दृष्टि से स्वस्थ, मानसिक रूप से सजग तथा सामाजिक दृष्टि से सशक्त हों।” इस परिभाषा में निम्न चार संकल्प सामने आते हैं –
- कुशल नेतृत्व
- अधिक सुविधा
- प्रत्येक व्यक्ति तथा समूह के लिए खेल में भाग लेने की संभावना
- शारीरिक रूप से पूर्ण, मानसिक रूप से साहसिक तथा सामाजिक रूप से सशक्त परिस्थितियाँ।
व्यक्ति तथा व्यक्ति दलों का विकास शारीरिक शिक्षा का अन्तिम ध्येय है। कुशल नायक, प्रचुर सुविधाएँ तथा समय ध्येय तक पहुँचने के साधन हैं तथा खेल परिस्थिति एवं व्यायाम प्रक्रियाएँ शारीरिक शिक्षा की कर्मभूमि हैं। जहाँ लक्ष्य शारीरिक शिक्षा की दिशा निर्धारित करता है, वहाँ उद्देश्य शारीरिक शिक्षा की उचित व्याख्या करते हैं और शिक्षाशास्त्रियों तथा बुद्धिजीवियों के मन में शारीरिक शिक्षा के विषय में पड़ी भ्रान्तियों का निवारण करते हैं। ये शिक्षा और शारीरिक शिक्षा में पारस्परिक सम्बन्ध को भी निर्धारित करते हैं।
शारीरिक शिक्षा की राष्ट्रीय योजना (1956) के अनुसार शरीर के विभिन्न अंगों को स्वस्थ बनाए रखना, चेतना पेशियों का ताल-मेल, कौशल तथा आचरण और व्यक्तित्व का विकास ही शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य हैं। विभिन्न विचारकों तथा शारीरिक शिक्षाशास्त्रियों के दृष्टिकोण को जाँचने-परखने के पश्चात् शारीरिक शिक्षा के उद्देश्यों को निम्न वर्गों में बाँटा जा सकता है –
(1) शारीरिक विकास सम्बन्धी उद्देश्य – शारीरिक विकास के उद्देश्यों का सम्बन्ध व्यवस्थित शारीरिक व्यायाम के माध्यम से शरीर के विभिन्न अंगों-प्रत्यंगों का विकास करना है। यह शरीर शक्ति में बल आदि का विकास करता है। इससे व्यक्ति अधिक स्वस्थ होता है। उसकी स्वास्थ्य तथा अन्य प्रणालियाँ अधिक शक्तिशाली होती हैं। व्यक्ति को दौड़ने, भागने, भार उठाने, चढ़ने, उतरने, फेंकने, पकड़ने, कूदने, फाँदने वाली क्रियाओं में और अधिक सहायक होते हैं।
(2) मानसिक विकास सम्बन्धी उद्देश्य – शारीरिक शिक्षा के समस्त कार्यक्रम व्यक्ति को खेल कौशल को ज्ञान तथा नियम, स्वास्थ्य सिद्धान्त एवं व्यायाम प्रणालियों के विषय में। ज्ञान कराते हैं। व्यक्ति के मन तथा मस्तिष्क को दृढ़ता तथा विश्वास प्रदान करते हैं। यही व्यक्ति के मानसिक विकास का रहस्य है। शारीरिक दृष्टि से शिक्षित व्यक्ति प्रत्येक स्थिति का | सामना दृढ़ निश्चय तथा आत्मविश्वास से करता है। इससे बच्चे। के मानसिक तनाव तथा दबाव को दूर किया जा सकता है। उन्हें उचित प्रकार से सोचने की शिक्षा दी जाती है। कठिनाइयों को हल करने तथा उन पर नियंत्रण करने का प्रशिक्षण भी दिया जा सकता है।
(3) गामक विकास सम्बन्धी उद्देश्य – इन उद्देश्यों की प्राप्ति से शारीरिक क्रिया-प्रक्रियाएँ अधिक उपयोगी सिद्ध होती हैं क्योंकि नाड़ी-पेशी समन्वय के स्थापित होने से गति में वृद्धि होती है। तंत्रिकाओं तथा पेशियों के बीच सुन्दर तालमेल व्यक्ति को विभिन्न गामक प्रक्रियाओं और खेल कौशलों को करने में सहायता प्रदान करता है। व्यक्ति खेलकूद में अधिक कुशल हो जाता है। उसके खेल का स्तर ऊँचा उठ जाता है। गामक विकास के अभाव में शारीरिक प्रक्रियाएँ फूहड़ तथा देखने में भद्दी लगती
(4) सामाजिक विकास सम्बन्धी उद्देश्य – अपना वैयक्तिक समायोजन, समूह समायोजन तथा एक सामाजिक सदस्य के रूप में समायोजन करने में ये उद्देश्य व्यक्ति की सहायता करते हैं। शारीरिक शिक्षा से खाली समय का सदुपयोग, अच्छी प्रवृत्तियों का निर्माण, अच्छे आचरण एवं चरित्र का विकास, प्रजातांत्रिक दृष्टिकोण, अच्छे खिलाड़ी के गुण, सुन्दर खेल भावना आदि सामाजिक विकास होता है । सभ्यता, संस्कृति तथा मानवता का विकास खेल क्रीड़ा के माध्यम से जितना संभव है, शायद अन्य किसी क्रिया के माध्यम से संभव नहीं है।
शारीरिक शिक्षा की परिभाषा प्रश्न 3.
शारीरिक शिक्षा का महत्त्व क्या है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा का महत्त्व – आज के वैज्ञानिक युग में हम सब विज्ञान के दास बन गये हैं। हमें प्रात:काल से लेकर रात्रि में सोने के समय तक बिजली, पंखा, हीटर, कूलर, बाईक, कार आदि की आवश्यकता पड़ती है। इन यन्त्रों पर आश्रित रहकर ही हम सुख का अनुभव करते हैं। परन्तु ये सब यन्त्र हमारे शरीर के लिये लाभकारी नहीं हैं। इनके उपयोग से हमारा प्रकृति से सम्बन्ध दूर होता जा रहा है। अरस्तू ने कहा था ‘स्वस्थ मस्तिष्क स्वस्थ शरीर में ही निवास करता है।”
आज के शिक्षाशास्त्री भी इस कथन को मानने के लिये बाध्य हैं। अच्छा मनुष्य शरीर से हृष्ट-पुष्ट, बुद्धि से प्रखर, संवेगात्मक दृष्टि से सन्तुलित और समाज में सुव्यवस्थित होता है। इसलिए आज सभी ने शारीरिक शिक्षा का महत्त्व स्वीकार किया है और इसे शिक्षा का अभिन्न अंग माना है। शारीरिक शिक्षा के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के खेल-कूद, दौड़, व्यायाम, योग आदि सम्मिलित किये जाते हैं। विद्यालयों में इन क्रियाओं को अनिवार्य किया गया है। शारीरिक शिक्षा गतिविधियों से स्वास्थ्य के अतिरिक्त अन्य लाभ भी हैं, जो निम्न प्रकार हैं –
- सामाजिकता का विकास
- नैतिक व चारित्रिक विकास
- सामान्य शिक्षा में सहायक
- नागरिकता की भावना का विकास
- खेल भावना का विकास
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 1 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
शारीरिक शिक्षा का अर्थ प्रश्न 1.
शारीरिक शिक्षा किसका अभिन्न अंग है?
उत्तर:
सामान्य शिक्षा का।
Sharirik Shiksha Ka Arth Evam Paribhasha प्रश्न 2.
शारीरिक शिक्षा की कर्मभूमि कौन है?
उत्तर:
खेल परिस्थिति एवं व्यायाम प्रक्रियाएँ शारीरिक शिक्षा की कर्मभूमि हैं।
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 1 लघूत्तरात्मक प्रश्न
Sharirik Shiksha Ke Uddeshy Ko Samjhaie प्रश्न 1.
शारीरिक प्रशिक्षण का अर्थ बताइये।
उत्तर:
शारीरिक प्रशिक्षण शारीरिक प्रशिक्षण से व्यक्ति को शारीरिक स्वास्थ्य बलशाली और सहनशील बनाया जाता है। यह एक प्रकार का कठिन परिश्रम है। इस प्रशिक्षण का प्रयोग अधिकतर सेना तथा पुलिस प्रशिक्षण केन्द्रों में किया जाता है।
शारीरिक शिक्षा के लक्ष्य एवं उद्देश्य बताइए प्रश्न 2.
शारीरिक शिक्षा का सामान्य शिक्षा से सम्बन्ध लिखिये।
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा का सामान्य शिक्षा से सम्बन्ध – सामान्यतः प्रत्येक व्यक्ति अपने अनुभवों से जीवन के विभिन्न क्षेत्रों-मानसिक, बौद्धिक, सैद्धान्तिक अथवा व्यावहारिक से अपना ज्ञान बढ़ाता रहता है। शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति में निहित गुणों को विकसित करना है। इस प्रक्रिया में शारीरिक शिक्षा का महत्त्व सामान्य शिक्षा से कहीं अधिक आँको गया है, क्योंकि खेलकूद, व्यायाम, क्रीड़ा एवं मनोरंजन से मन तथा तन समान रूप से स्वस्थ रहते हैं। व्यायाम शरीर को स्वस्थ, तन्दुरुस्त, सशक्त तथा सुदृढ़ करता है जिससे मस्तिष्क व शरीर दोनों स्वस्थ रहते हैं, शारीरिक शिक्षा शारीरिक प्रक्रियाओं की शिक्षा है।
अतः विद्यार्थी विभिन्न अनुभवों के माध्यम से शिक्षा ग्रहण करता है। शारीरिक शिक्षा पेशी प्रक्रियाएँ हैं, किन्तु इसका उद्देश्य शिक्षा के उद्देश्य से भिन्न नहीं है। शारीरिक विकास के साथ-साथ उसका मानसिक तथा सामाजिक विकास होता है। प्लेटो का यह विचार कि संगीत तथा जिम्नास्टिक को यदि हम एक साथ आत्मिक विकास का माध्यम बनाएँ तो परिणाम आश्चर्यजनक होंगे। इसी तरह शारीरिक शिक्षा को विकास का माध्यम बनाएँ तो अभूतपूर्व परिणाम प्राप्त होंगे।
Sharirik Shiksha Ka Arth Spasht Kijiye प्रश्न 3.
शारीरिक शिक्षा, शिक्षा के कार्यक्रम के अनुरूप कैसे है?
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा, शिक्षा के कार्यक्रम का वह भाग है जिसमें शारीरिक क्रियाओं के द्वारा बच्चों को विकसित और शिक्षित किया जाता है। उसका प्रभाव बच्चों के सम्पूर्ण जीवन पर पड़ता है, जिससे उनमें शारीरिक, मानसिक, भावात्मक और नैतिकता के गुण उत्पन्न होते हैं।
RBSE Class 9 Physical Education Chapter 1 निबन्धात्मक प्रश्न
Sharirik Shiksha Ka Arth In Hindi प्रश्न 1.
शारीरिक शिक्षा व्यक्ति का सम्पूर्ण विकास कैसे करती है? समझाइये।
उत्तर:
शारीरिक शिक्षा व्यक्ति का सम्पूर्ण विकास निम्न प्रकार करती है –
(1) जैसे-जैसे विश्व में सभ्यताओं का विकास हुआ, उनके साथ-साथ शारीरिक शिक्षा का भी विकास होता गया। आधुनिक युग को यंत्र युग कहा जाता है। आजकल प्रत्येक कार्य को मशीन द्वारा किया जाने लगा है। व्यक्ति को बहुत ही कम शारीरिक शक्ति के प्रयोग की जरूरत पड़ती है। मशीनी युग ने मनुष्य की मांसपेशियों को निढाल बना दिया है। ऐसी स्थिति में शारीरिक शिक्षा की अत्यन्त आवश्यकता है।
(2) शहरों में रहने वाले युवकों को ग्रामीण युवकों की तरह अपने दैनिक घरेलू जीवन में अभिभावकों के कामों में हाथ बँटाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। शहरों में अधिक पैदल नहीं चलना पड़ता, क्योंकि शहरों में साधनों की कमी नहीं है। खेलकूद तथा अन्य शारीरिक क्रियाओं में भाग न लेकर रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा आदि से अपना मनोरंजन कर लेते हैं। ऐसी स्थिति में शहरी युवाओं को शारीरिक शिक्षा की बहुत आवश्यकता है।
(3) सुडौल एवं स्वस्थ युवक राष्ट्र की सम्पत्ति ही नहीं है, बल्कि उसकी आवश्यकता भी सदैव रही है। हमारे देश के नवयुवक भविष्य के हर क्षेत्र में आगे बढ़े, इसके लिए शारीरिक शिक्षा को माध्यम के रूप में अपनाना उचित होगा। इस दिशा में हमें बच्चों के पूर्ण विकास के लिए शुरू से ही योजनाबद्ध खेलों के कार्यक्रम चलाने की आवश्यकता है।
(4) प्राचीनकाल में नि:सन्देह शरीर व मस्तिष्क को अलगअलग मानते थे किन्तु यहाँ तनिक विचार करना आवश्यक है, कि क्या बिना शरीर के मस्तिक का अस्तित्व संभव है। कष्ट से पीड़ित शरीर वाला मनुष्य सोचने-विचारने में एकाग्रचित नहीं हो सकता। क्रोधाविष्ट मनुष्य की आँखें प्रायः लाल हो जाती हैं, नथुने फूलने लगते हैं व शरीर काँपने लगता है। तात्पर्य यह है, कि शरीर व मस्तिष्क को पारस्परिक घनिष्ठ सम्बन्ध है। जब शरीर व मस्तिष्क दोनों ठीक रहें तभी कोई व्यक्ति महान् उपलब्धियों की आकांक्षा कर सकता है।
(5) आज के युग के लोग यह भी मानते हैं कि शारीरिक शिक्षा ही मनुष्यों को अच्छा और योग्य बना सकती है। इसलिए आज तक किसी भी देश के लोग शारीरिक शिक्षा के बिना सम्मानपूर्वक जीवन नहीं जी सकते हैं। केवल शैक्षणिक संस्थाएँ सभी विद्यार्थियों का उचित नेतृत्व नहीं कर सकतीं। इसलिए आवश्यक है कि शारीरिक शिक्षा को प्रत्येक स्कूल और कॉलेज में पूरा महत्त्व दिया जाए। इसलिए शारीरिक शिक्षा, शिक्षा के कार्यक्रम का वह भाग है जिसमें शारीरिक क्रियाओं के द्वारा बच्चों को विकसित और शिक्षित किया जाता है। उसका प्रभाव बच्चों के सम्पूर्ण जीवन पर पड़ता है, जिससे उनमें शारीरिक, मानसिक, भावात्मक और नैतिकता के गुण उत्पन्न होते हैं।
अतः स्पष्ट है कि शारीरिक शिक्षा व्यक्ति का सम्पूर्ण विकास करती है।